रिवर्स रेपो दर और रेपो दर: अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और अंतर
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रिवर्स रिपो दर और रेपो दर बैंकिंग की दो महत्वपूर्ण टर्म हैं जो अक्सर चर्चा में रहती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये दोनों दरें एक-दूसरे से अलग होती हैं। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) द्वारा निर्धारित ये दरें देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हैं। सरल शब्दों में कहें तो, रेपो दर वह दर है जिस पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों को पैसा उधार देता है। वहीं, रिवर्स रेपो दर वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचकर कमर्शियल बैंकों से धन उधार लेता है।

आइए हम इन दरों, यानी रिवर्स रिपो दर और रेपो दर के बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं, और यह भी जानते हैं कि वे अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करती हैं।

रिवर्स रेपो दर क्या है?

रिवर्स रेपो दर वह ब्याज़ दर है जिस पर कमर्शियल बैंक अपनी अतिरिक्त नकदी को भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के पास जमा करते हैं। दूसरे शब्दों में, यह वह दर है जिस पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों से अल्पकालिक लोन लेता है। रिवर्स रेपो दर का इस्तेमाल केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को प्रबंधित करने के लिए भी करता है। जब अर्थव्यवस्था में नकदी की कमी होती है, तो आरबीआई रिवर्स रेपो दर को कम कर सकता है। इससे कमर्शियल बैंकों के लिए आरबीआई से लोन लेना ज़्यादा सस्ता हो जाता है, जिससे अर्थव्यवस्था में नकदी की मात्रा बढ़ जाती है।

रेपो दर क्या है?

रेपो दर वह ब्याज़ दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) कमर्शियल बैंकों को अल्पकालिक लोन देता है। यह दर भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, ब्याज़ दरों को प्रभावित करने और अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को प्रबंधित करने में मदद करती है। जब मुद्रास्फीति बढ़ रही होती है, तो आरबीआई रेपो दर को बढ़ा सकता है। इससे कमर्शियल बैंकों के लिए आरबीआई से लोन लेना महँगा हो जाता है, जिसकी वजह से कंज़ूमर लोन और खर्च कम हो जाता है, और मुद्रास्फीति पर दबाव कम होता है।

रेपो दर और रिवर्स रेपो दर के बीच क्या फ़र्क है?

रेपो दर और रिवर्स रेपो दर दोनों महत्वपूर्ण आर्थिक उपकरण हैं आरबीआई जिनका इस्तेमाल मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, ब्याज़ दरों को प्रभावित करने और अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह का प्रबंधन करने के लिए करता है। आइए जानते हैं कि रेपो दर और रिवर्स रेपो दर के बीच फ़र्क क्या है:

विशेषता

रेपो दर

रिवर्स रेपो दर

परिभाषा

वह ब्याज़ दर जिस पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों को लोन देता है।

वह ब्याज़ दर जिस पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों से अल्पकालिक लोन लेता है।

दिशा

बढ़ती या घटती है।

घटती या बढ़ती है।

उद्देश्य

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना, ब्याज़ दरों को प्रभावित करना, और अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह का प्रबंधन करना।

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना, ब्याज़ दरों को प्रभावित करना, और अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह का प्रबंधन करना।

प्रभाव

कमर्शियल बैंकों द्वारा दिए जाने वाले लोन्स की ब्याज़ दरों को बढ़ाता या घटाता है।

कमर्शियल बैंकों द्वारा जमा किए जाने वाले लोन्स की ब्याज़ दरों को बढ़ाता या घटाता है।

उदाहरण

अगर आरबीआई रेपो दर को बढ़ाता है, तो कमर्शियल बैंक उपभोक्ताओं और व्यवसायों को दिए जाने वाले लोन्स पर ज़्यादा ब्याज़ वसूल करेंगे।

अगर आरबीआई रिवर्स रेपो दर को बढ़ाता है, तो यह कमर्शियल बैंकों को अपनी अतिरिक्त नकदी जमा करने के लिए ज़्यादा ब्याज़ देगा।

आरबीआई द्वारा रेपो दर और रिवर्स रेपो दर में कटौती का वित्तीय बाज़ारों पर प्रभाव

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) समय-समय पर रेपो दर और रिवर्स रेपो दर में कटौती कर सकता है। आइए जानते हैं कि इन दरों में कटौती का वित्तीय बाज़ारों पर क्या प्रभाव पड़ता है:

  • रेपो दर में कटौती: बैंक कम ब्याज़ दर पर आरबीआई से पैसा उधार ले सकते हैं। बैंक कम ब्याज़ दर पर लोन दे सकते हैं। लोन सस्ता होने से उपभोक्ता ज़्यादा उधार ले सकते हैं और खर्च बढ़ा सकते हैं। इससे अर्थव्यवस्था में गति आ सकती है। हालांकि, यह ज़रूरी नहीं कि बैंक कम रेपो दर का फ़ायदा सीधे ग्राहकों तक पहुंचाएंगे।
  • रिवर्स रेपो दर में कटौती: बैंकों को आरबीआई के पास जमा राशि पर कम ब्याज़ मिलेगा। बैंक अपनी अतिरिक्त राशि को अन्य निवेश विकल्पों, जैसे मनी मार्केट में लगाना पसंद करेंगे। इससे अर्थव्यवस्था में कुल नकदी प्रवाह बढ़ सकता है।

 

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

· रेपो दर सावधि जमा (एफ़डी) को कैसे प्रभावित करती है ?

जब रेपो दर बढ़ती है, तो एफ़डी पर दी जाने वाली ब्याज़ दरें भी बढ़ती हैं। लंबी अवधि के लिए एफ़डी पर ज़्यादा प्रभाव पड़ता है। अगर आप एफ़डी खोलने की योजना बना रहे हैं, तो ऊँची रेपो दर ज़्यादा आकर्षक रिटर्न दे सकती हैं।

· बैंकों और लोन्स के मामले में रेपो दर में वृद्धि का क्या प्रभाव पड़ता है ?

रेपो दर बढ़ने पर बैंकों के लिए पैसा उधार लेना महँगा हो जाता है। नतीजतन, बैंक लोन और एडवांस पर अपनी ब्याज़ दरें बढ़ाते हैं। लोन लेना महँगा होने से लोग कम लोन लेते हैं, जिससे खर्च कम होता है और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण होता है।

· रेपो समझौते का इस्तेमाल कौन करता है ?

रेपो समझौते का इस्तेमाल भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) कमर्शियल बैंकों को अल्पकालिक लोन प्रदान करने के लिए करता है। बैंक अपनी अतिरिक्त नकदी को आरबीआई के पास जमा करने के लिए भी इसका इस्तेमाल करते हैं। आरबीआई मुद्रास्फीति और आर्थिक विकास को नियंत्रित करने के लिए रेपो दर का इस्तेमाल करता है।

· अगर रिवर्स रेपो दर बढ़ जाए तो क्या होगा ?

रिवर्स रेपो दर बढ़ने पर बैंकों को आरबीआई के पास जमा राशि पर ज़्यादा ब्याज़ मिलता है। बैंक अपनी अतिरिक्त नकदी को आरबीआई के पास जमा करना पसंद करेंगे, जिससे अर्थव्यवस्था में नकदी की मात्रा कम हो सकती है। आरबीआई मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए रिवर्स रेपो दर का इस्तेमाल करता है।

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